काले खेती कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा, कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व अधीन पंजाब सरकार का रुख साफ
केंद्र को यह मुद्दा प्रतिष्ठा और अभिमान का सवाल न बनाने के लिए कहा, किसानों की रक्षा के लिए कुछ भी करने का ऐलान
कैबिनेट की तरफ से एम.एस.पी. को कानूनी अधिकार बनाने की माँग वाला प्रस्ताव पास, आंदोलनकारी किसानों की मौतों पर दुख प्रगटाया
चंडीगढ़, 15 जनवरी : राज्य और इसके किसानों के हितों की रक्षा के लिए सभी कदम उठाने की बात कहते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने गुरूवार को यह साफ कर दिया कि केंद्र सरकार की तरफ से बनाऐ काले खेती कानूनों, जोकि किसान विरोधी, देश विरोधी और खाद्य सुरक्षा विरोधी हैं, को रद्द करने से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा। कैबिनेट ने यह भी साफ किया कि यही कदम उठाने से मौजूदा समस्या का निपटारा हो सकता है।
प्रदेश कैबिनेट की मीटिंग में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार जमीनी हकीकतों से कोसों दूर है। मंत्रीमंडल के सदस्यों ने एकसुर में ऐलान किया कि मौजूदा मुश्किल हालात के साथ निपटने के लिए खेती कानूनों को वापस लेना ही एकमात्र हल है।
मंत्रीमंडल ने यह भी माँग की कि केंद्र की तरफ से न्युनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) को किसानों का कानूनी अधिकार बनाया जाना चाहिए क्योंकि किसान पूरे देश का पेट भरते हैं परन्तु इसके बावजूद बीते कई दिनों से अपनी उपज का बहुत ही कम मूल्य मिल रहा है।
मीटिंग की शुरुआत के अवसर पर मंत्रीमंडल ने किसानी आंदोलन के दौरान मृत हो चुके किसानों की याद में दो मिनट का मौन रखा। इस किसानी संघर्ष के दौरान अभी तक लगभग 78 किसानों की मौत हो चुकी है। कैबिनेट ने यह भी कहा कि इस संघर्ष के मौके पर और जानी नुकसान से बचने के लिए इस समस्या का जल्द निपटारा किये जाने की जरूरत है। यह मसला किसानों और भारत सरकार के बीच हुई आठ दौर की वार्ता के दौरान विचारा जा चुका है।
यह स्पष्ट करते हुए कि सुप्रीम कोर्ट ने भी संघर्षशील किसानों की चिंताओं को माना है और उनके दर्द को प्रमाणित किया है, कैबिनेट ने कहा कि भारत सरकार को इस मसले को प्रतिष्ठा और अभिमान का सवाल नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यदि यह मुद्दा अनसुलझा रहा तो इससे कई दशकों तक देश को भारी कीमत उठानी पड़ेगी। कैबिनेट मंत्रियों जिनके साथ पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान सुनील जाखड़ शामिल हुए, ने यह भी कहा कि यदि केंद्र सरकार कानूनों में बड़े स्तर पर बदलाव कर सकती है तो इन कानूनों को वापस न लेने की जिद्द समझ से बाहर है।
एक औपचारिक प्रस्ताव में मंत्रीमंडल ने स्पष्ट शब्दों में पंजाब विधान सभा की तरफ से 28 अगस्त, 2020 और 20 अक्तूबर, 2020 को पास किये गए प्रस्तावों के प्रति अपनी वचनबद्धता को दोहराते हुये इस बात पर जोर दिया कि किसानों की सभी जायज माँगों मानी जानी चाहीऐ। मंत्रीमंडल ने भारत सरकार को यह खेती कानून रद्द करने के लिए कहा क्योंकि भारत के संविधान के अंतर्गत कृषि, प्रांतीय विषय है और इसी तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) को कानूनी अधिकार बनाया जाये। मंत्रीमंडल ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से खेती कानूनों पर रोक लाने के हुक्मों का स्वागत किया जिसमें पंजाब के किसानों की चिंताओं को माना गया जोकि खेती कानूनों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं और उनकी पीड़ा और गुस्से को प्रमाणित करते हैं।
प्रस्ताव के मुताबिक, ‘‘सभी सम्बन्धित पक्षों के साथ विस्तृत तौर पर संवाद करने और विचार -चर्चा किये जाने की जरूरत है क्योंकि इन कानूनों के साथ देश भर में लाखों ही किसानों के भविष्य पर प्रभाव पड़ा है और किसानों की सभी जायज माँगों मानें जानी चाहीये।’’
पंजाब मंत्रीमंडल ने विस्तृत विचार-विमर्श के बाद सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 12 जनवरी, 2021 को तीन खेती कानूनों ‘किसानी फसल व्यापार और वाणिज्य (उत्साहित करने और आसान बनाने) एक्ट ’, ‘जरूरी वस्तुएँ (संशोधन) एक्ट और ‘किसानों के (सशक्तीकरण और सुरक्षा) कीमतों के भरोसे और खेती सेवाओं संबंधी करार एक्ट ’ पर रोक लाने के हुक्म को ध्यान हेतु लिया।
मंत्रीमंडल ने किसानों द्वारा लोकतांत्रिक परंपराओं के मुताबिक शांतमयी ढंग के साथ संघर्ष किये जाने की भी सराहना की जिसका भारत की सर्वोच्च अदालत ने भी नोटिस लिया है।
मुख्यमंत्री ने मंत्रीमंडल की यह मीटिंग सुप्रीम कोर्ट के हुक्मों की रौशनी में इस मुद्दे पर विचार -विमर्श के एक-नुक्ते एजंडे पर बुलायी थी।
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