महान क्रान्तिकारी कामरेड तेजा सिंह स्वतंत्र ने कई क्रान्तिकारी लहरें आरम्भ की तथा कई जत्थेबंदियों को अस्तित्त्व में खड़ा किया, कल 12 अप्रैल को उनकी बरसी पर विशेष- बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)
मो.: 98156-25409
महान क्रान्तिकारी देशभक्त कामरेड तेजा सिंह स्वतंत्र
महान क्रान्तिकारी कामरेड तेजा सिंह स्वतंत्र जी का जन्म
स. कृपाल सिंह उर्फ देसा सिंह के घर 1901 को गांव अलूणा,
जिला गुरदासपुर, पंजाब में हुआ। उनके अभिभावक किसान (कृषि)
घराने से संबंध रखते थे। उनके पिता जी स्वयं क्रान्तिकारी विचारों वाम तामियमईउन
के स्वामी थे।
उनकी जीवन शैली परदर्शी एवं उच्चकोटि की थी। उन्होंने
अपना स्वास-स्वास (पल-पल) देश सेवा को समर्पित किया। वह
खालसा कॉलेज अमृतसर में पड़े।
जल्लियां वाले बाग के ‘रक्त
हादसे’ से प्रभावित होकर उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध अनेका
क्रान्तिकारी लहरें आरम्भ की तथा कई जत्थेबंदियों को अस्तित्त्व
में खड़ा किया। भष्टाचार, महत्तों तथा गसदों के विरुद्ध बटकर
आवाज उठाई। अकाली जत्थे भर्ती किए। वह देश-विदेश में अनेक
भाषायों के ज्ञाता एवं परपक्क प्रचारक थे। अनेक भाषायों का ज्ञान
तथा विदेशी विश्वविद्यालयों से कई सिग्रियां अत्तीर्ण कर चुके थे।
उन्होंने देश आजाद करवाने के लिए विदेशों में रह कर जहाज
त्वरीदे तथा तुरकी इत्यादि देशों की सेना में ऑफिसर भी रहे। खास
करके ईस्ट्रन यूनिवर्सिटी मास्को से फलसफे तथा तकनीकी शिक्षा
के कई कोर्स पास किए। वह एक बढ़िया लेखक, समीक्षक एवं
संपादक भी थे। पंजाब ऐसम्बली के मुकाबले के अतिरिक्त सदस्य
चुने गए।
इस तरह की अनेक उपलब्धियों तथा देश भक्ति का
जज़्बा ओर निस्काम सेवा के उनकी कुर्बानियां हमेशा के लिए धरु तारे की भाति चमकती रहेगी।
स्वतंत्र जी के समस्त परिवार ने नामधारी लहर, गदर लहर, अकाली लहर, आज़ादी की लहर में विशेष
योगदान डाला। उनके भूमिगत समय, उनके छोटे भाई पुलिस को यातनाएं जेलों – थानों में झेल रहे थे और
सबसे छोटा भाई मेदन सिंह मेदन बरेली सेंटरल जेल में उम्र केद था। वृद्ध माता पिता, उनकी विधवा छोटी
बहन, भानजा तथा स्वतंत्र जी की एकलौती बेटी इत्यादि की मृत्यु उनकी गैर-हाज़री में ही हुई। घर की
तबाही, निर्धनता, मुश्किलें, मुसीबतों के अनेकानेक पहाड़ टूटे। उम्र कैद काट रहे मेदन जी की धर्म पत्नी
की चिट्ठी जब जेल में उनको मिलती है तो उस में घर की तबाही का जिक्र था।
स्वतंत्र जी ने ‘तेजा बीहला’ गुरुद्वारा जो किले नुमा बना हुआ था और ‘उविठया’ का गुरुद्धारा फौजी
तरकीब से महत्तों से आजाद करवाए। इस मुहिम में किसी को थप्पड़ तक मारने की ज़रूरत नहीं पड़ी, जबकि
अन्य गुरुद्वारों को आजाद करवाने के लिए कई-कई माह और वर्ष भी लगे। मोर्चे लम्बे हो जाते थे। ‘गुरू
का बाग’ का मोर्चा (आन्दोलन) लम्बा समय लेता देखकर स्वतंत्र जी ने उस समय की लीडरशिप को राय
दी कि शान्तमई ढंग छोड़कर ‘डुरली जत्थे’ के ज़रिए यह मोर्चा शुरू किया जाए, आखिर उस जत्थे में अपना
‘स्वतंत्र शहीद जत्था मोर्चा’ शुरु किया और ‘गुरु के बाग’ का मोर्चा जीत लिया।
इन घटनाओं ने स्वतंत्र
जी को उस वक्त की लीडरशिप की प्रथम श्रेणी में ला खड़ा किया। वह उस समय के लीडरों से सब से
छोटे थे परन्तु, विद्या और रणश्रेणी में सब से आगे थे। तब ही शरोमणि अकाली दल के सिक्रव प्रचार के
लिए उनको अफगानिस्तान भेजा, चूकि स्वतंत्र जी के पिता बावा कृपाल सिंह जी के गदरियों के साथ संबंध
थे।
इसलिए काबल में वह गदरियों के सम्पर्क में आए, भाई रतन सिंह, मास्टर ऊचम सिंह, बाबा गुरमुख सिंह
इत्यादि उस समय के फरार गदरिमों के साथ उनका पूरा-पूरा तालमेल था।
तुरकी तथा अफगानिस्तान की हकुमतें अंग्रेज विरोधी भी, इन हकूमतों की प्रेणा ने स्वतंत्र जी को
तुरकी सैनिक विद्या लेने के लिए तुरकी भेजा, जहां उन्होंने कुस्तुनतुनिया सैनिक कॉलेज से उच्च विद्या प्राप्त
की।
1929 में अमरीका की गदर पार्टी खण्डित हो गई। अंग्रेजों की साजिश के कारण, उनके खरीदे गदारों
ने भाई भाग सिंह जैसे गदरी मरवा दिए। गदर पार्टी के हुक्म मुताबिक वह नौकरी छोड़कर अमरीका गए,
वहां जा कर उन्होंने ‘गदर’ अखबार निकाला और उस में लम्बे-लम्बे लेख लिख कर लोगों को देश की
आज़ादी के लिए एकत्रित किया और इस के साथ ही गुरीलों को जत्थेबंद करके 30 के करीब अंग्रेजों ने
खरीदे गदारों को मौत के घाट उतारा।
अमरीका में उस समय तहलका मचा दिया। अंग्रेजों ने अमरीका सरकार
मो मजबूर किया किवह स्वतंत्र को अमरीका से निकाल दे।
स्वतत्र जी शात व्यवस्था के वहां तक आग्रणी थे वहा तक लोगों को जागृत एवं एकत्रित किया जा
सके, परन्तु इसके साथ-साथ हथियार बंदी को बहुत अनिवार्य समझते थे। वह कहा करते थे कि किसी इमलाबी
लहर के लिए तकरीर और श्मशीर दोनों का होना लाज़मी (अनिवार्य) है। यह प्रयोग ज़रत आने पर करना
चाहिए।
परन्तु इसके साथ-साथ हथियार बंदी को बहुत अनिवार्य समन्नते थे। वह कहा करते थे कि किसी इमलावी
लहर के लिए तकरीर और जमशीर दोनों का होना लाज़मी (अनिवार्य) है। यह प्रयोग जरूरत आने पर करना
चाहिए।
स्वतंत्र जी ने भारत की 80 प्रतिशत किरसानी को जत्थेबंद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और
वह ‘कुल हिन्द किसान सभा के अध्यक्ष भी रहे। पेपन की गुजाहरा लहर को जत्थेबंद करके गुरीला जत्थे
बना कर 17/2 लाख एकड़ भूमी मुजाहरों को, बेजमीनों में बांटी। वह इस लहर के जन्मदाता थे। वह भारतीय
भाषायों के अतिरिक्त 14 विदेशी भाषायों के माहिर थे।
वह एक महान जरनैल, स्यासतदान, लेखक, मर्मस्पर्शी
प्रवक्ता, त्यागी, निर्भीक और सच्चे देश भक्त थे। उनकी शख्सियत में मिकनातीसी आकर्षण था। उनकी लग्न,
लोक सेवा, सादगी, निस्काम भावना अपने आप में एक उदाहरण है। सरकार ने इस परिवार की ओर कभी
ध्यान नहीं दिया, न ही सरकार ने उनकी कोई मुख्य यादगर बनाई है, बल्कि पंजाबी की पाठ पुस्तक से
उनकी जीवनी निकाल दी गई है। हरदोछन्नी रोड पर उनकी याद का गेट था, वह भी उठा लिया गया है।
मौजूदा सरकार को इस महान देश भक्त की याद को जिंदा रखने के लिए अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवानी
चाहिए।
कल स्वतंत्र जी की बरसी (12 अप्रैल को) उनके निजी गांव अकालगढ़, अलूणा, हरदोछन्नी, गुरदासपुर
में धूमधाम एवं श्रद्धा से मनाई जा रही है। इस वर्ष उनकी 47वीं बरसी मनाई जा रही है।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
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