नमन : टूटी सासों की डोर, मगर नहीं टूटा रक्षा का अटूट बंधन, जिस गांव को बचाते हुए पाई शहादत वहां की बहनों ने

जिस गांव को बचाते हुए पाई शहादत वहां की बहनों ने समाधि पर राखी बांध कायम रखी परंपरा
 
49 वर्षों से शहीद कमलजीत सिंह की समाधि पर बांधी जा रही राखी
 
पठानकोट/बमियाल  (राजेंद्र राजन  ब्यूरो चीफ, अविनाश शर्मा चीफ रिपोर्टर )
 
रक्षा बंधन का पर्व हो और बहन को भाई की याद न आये ऐसा तो हो नहीं सकता। कच्चे धागों की डोर से बंधे भाई बहन के प्यार और इस पावन रिश्ते से बढक़र कोई अन्य रिश्ता दुनिया में नहीं है। बहन की मांगी हुई दुआएं मुसीबत की घड़ी में भाई की रक्षा करती हैं।
 
इसी अटूट रिश्ते के बंधन में बंधी एक अभागी बहन जालंधर निवासी अमृतपाल कौर अपने शहीद भाई की स्मृतियां जहन में समेटे हुए भारत-पाक की जीरो लाईन पर बसे गांव सिंबल की बी.एस.एफ की पोस्ट पर बनी 1971 के भारत-पाक युद्ध के शहीद होने वाले अपने भाई की समाधि पर पिछले 43 वर्षों से निरंतर राखी बांधती आ रही थी, मगर 5 वर्ष पहले भाई बहन के इस अटूट बंधन के 44वां वर्ष पूरा होने से कुछ दिन पहले अमृतपाल कौर की सांसों की डोर टूट गई। वह दो महीने कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए मौत के आगोश में चली गई।
शहीद भाई की समाधि पर राखी बांधने की परंपरा को बरकरार रखते हुए उस साल अमृतपाल कौर की चचेरी बहन अमितपाल कौर ने सिंबल पोस्ट पर जाकर अपने चचेरे भाई शहीद कमलजीत सिंह की समाधि पर राखी बांधी थी तथा पोस्ट पर मौजूद बीएसएफ के जवानों को उन्होंंने यह वचन दिया था कि इस परंपरा को वह आगे बढ़ाएंगी,मगर अफसोस उसके बाद वह दोबारा इस पोस्ट पर राखी बांधने नहीं आई।
 
मरने से तीन दिन पहले अमृतपाल कौर ने परिषद से लिया था वचन-कुंवर विक्की
 
शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंदर सिंह विक्की ने बताया कि मरने से तीन दिन पहले शहीद की बहन अमृतपाल कौर ने परिषद से यह वचन लिया था कि उनके द्वारा पिछले 43 वर्षो से अपने भाई की समाधि पर राखी बांधने की शुरु की गई परंपरा रुकने नहीं चाहिए।चाहे उनके परिवार का कोई दूसरा सदस्य बेशक यहां न पहुंचे।इसी बचन की डोरी से बंधे परिषद के सदस्यों ने एक नई परंपरा की शुरुआत करते हुए बहन अमृतपाल कौर के दुनिया को अलविदा कहने के बाद  सरहदी गांव की बेटियों को साथ लेकर शहीद कमलजीत की समाधि पर राखी बांधने रस्म को पिछ्ले 5 साल से बाखूबी जारी रख शहीद की बहन को दिये बचन को निभा रहे हैं।इस बार जिस गांव सिंबल को बचाते हुए कमलजीत ने शहादत पाई थी उस गांव की मंदीप कौर व हरप्रीत कौर  ने परिषद सदस्यों के साथ शहीद की समाधि पर रेशम की डोरी बांध अमृतपाल द्वारा 49 वर्ष पहले शुरु की गई परंपरा को बरकरार रखा।
 
शहीद कमलजीत को मसीह के रूप में पूजते हैं गांव सिंबल के लोग 
 
हरप्रीत कौर व मंदीप कौर ने नम आंखों से बताया कि गांव सिंबल के लोग कमलजीत सिंह को आज भी एक मसीहा के रुप में पूजते हैं। इस लिए वह भविष्य में भी इसी तरह अपने गांव के रक्षक भाई की समाधि पर राखी बांधती रहेंगी। इसके अलावा उन्होंने पोस्ट पर तैनात बी.एस.एफ के जवानों की कलाई पर राखी बांधकर उन्हें यह अहसास करवाया कि बेशक उनकी मुंह बोली बहन अमृतपाल कौर की सांसो की डोर टूटी है, मगर रक्षा बंधन का यह अटूट रिश्ता कभी नहीं टूटेगा।
 
 
सरहदी बहनों से राखी बंधवा अपनी बहनों की कमीं नहीं खली- कंपनी कमांडर 
 
इस अवसर पर पोस्ट के कंपनी कमांडर  ठुक्कल महादेओ ने कहा कि इन सरहदी बहनों ने उनकी कलाई पर जो रक्षासूत्र राखी के रुप में बांधा है, यह एक कवच के  रुप में हमारे जवानों की रक्षा करेगा।आज इन मुंह बोली बहनों ने हमारी कलाई पर राखी बांध हमें जो स्नेह दिया है, उससे हजारों मील दूर बैठी हमारी अपनी बहनों की कमी हमें नहीं खलने दी, हम अपनी इन बहनों को यह बचन देते हैं कि हम अपने खून की आखिरी बूंद तक इन सरहदों की रक्षा करते रहेंगे।
 
इस अवसर पर शहीद कर्नल के.एल गुप्ता के भाई सुरिंदर गुप्ता,  शहीद सिपाही दीवान चंद की पत्नी सुमित्री देवी, बेटा लाल चंद, पौत्र सन्जू, शहीद सिपाही अश्वनी कुमार के भाई बूई लाल, एस आई भीम सिंह, ए एस आई भरत राए, सुरजीत सिंह, सरपंच परमजीत कौर, नायक पीके तिवारी, एचसी आर के रावत,सेना के 9 जैक राइफल यूनिट के राइफलमैन सचिन कुमार, हवलदार मोहन लाल, कांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल नंद किशोर, मंजीत सिन्ह,रमेश सिंह आदि उपस्थित थे।
 
 
 
 
 
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