HOSHIARPUR (MANNA) यह निरंकार प्रभु समय के साथ बदलता नहीं है। हमेशा एक रस रहने वाला है। इस निरंकार प्रभु में ही हर चीज़ की शुरुआत है और अंत में इसी में ही होता है। यह विचार निरंकारी सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने अलीगड़ में आयोजित निरंकारी संत समागम दौरान प्रकट किये। उन्होंने फरमाया कि मनुष्य शरीर में जो आत्मा है इस निरंकार प्रभु की अंश है, इस लिए निरंकार प्रभु को ही जीवन का आधार बना कर जीवन व्यतीत करना चाहिए।
अलीगड़ तालों का शहर है, इसकी उदाहरण देते हुए समझाया कि मनुष्य को मन को ताला लगा कर रखना चाहिए कि इसके में एक गलत विचार कोई सोच इसमें में आ ही न सके। यह निरंकार हर समस्या का हल है। आज समाज में मनुष्य को जाति -मजहब समेत अन्य सामाजिक बुराईओं की जंजीरों ने जकड़ा हुआ है, इसको यदि मनुष्य ब्रह्मज्ञान रूपी चाबी के साथ खोल ले तो मनुष्य परमात्मा के रंग में रंग सकता है और जीवन में ख़ूबसूरती आ सकती है।
उन्होंने फरमाया कि इस निरंकार प्रभु का एहसास करते हुए मन को साफ रखा जा सकता है। दूसरों को शिक्षा देने से पहला शुरुआत अपने आप में बदलाव ला करके किया जा सकता है। सेवा, सिमरन और सत्संग की महिमा के बारे समझाते हुए फरमाया कि सत्संग करन के साथ मन के में शुद्ध विचारों को सुन -सुन कर ओर मज़बूती मिलती है। सिमरन करने के साथ मन निरंकार प्रभु के साथ जुड़ जाता है। सेवा, सिमरन और सत्संग मन के साथ करना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि यह निरंकार प्रभु सदा रहने वाली स‘चाई है।
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