HOSHIARPUR( MANNPRET MANNA) हम सब एक परम पिता परमात्मा की अंश है और इसकी पहचान करके ब्रह्मज्ञान की रोशनी प्राप्त करनी है । ब्रह्मज्ञान की रोशनी प्राप्त करने के बाद नादानियों को छोड़ते हुए प्यार , विनम्रता सहनशीलता जैसे गुणों को अपनाकर सच्चाई और अध्यात्मिकता के रास्ते पर चलने की पहल करनी है। इन शब्दों का प्रकटावा सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने पुणे महाराष्ट्र में हुए एक विशाल निरंकारी संत समागम दौरान किया। उन्होंने आगे फरमाया कि हमें मानवीय गुणों के ग्राहक बन एक सुन्दर मानवीय जीवन जीना है। आज का मानव केवल शिकवे, शिकायतें, नफऱत, निंदा , वैर -विरोध के साथ-साथ दूसरों को किस तरह नुक्सान पहुँचाना है, दूसरों को किस तरह नीचा दिखाना है। इसमें ही अपना समय बर्बाद कर रहा है। मानव प्यार, विनम्रता, सहनशीलता, सहयोग की रास्तों से कोसों दूर जाता नजऱ आ रहा है परन्तु जितने भी गुरू, पीर, पैग़म्बर इस धरती पर आए उन्होंने हर मानव को समझा कर एक करने की कोशिश की है। आजकल के संसार के हालतों का सहज में ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हमें अपने मन के अंदर से नकारात्मक भावनाओं को ख़त्म करने की कितनी ज़रूरत है जिससे धरती को एक स्वर्ग का नक्शा बनाया जा सके। हर एक में परमात्मा की अंश को देखते हुए पहल और सभी को सम्मान देने की ज़रूरत है, दूसरे के दुख को समझने व दुख में शरीक होने की ज़रूरत है और ये तभी संम्भव होगा जब हम इस निरंकार प्रभु परमात्मा को जान लेगें तब हमारे मनों में से दीवारे गिर जाएगी और भाईचारा कायम हो जाएगा।
उन्होंने फरमाया कि जो भी हमें जो ये कीमती मानव जीवन मिला है इसको को व्यर्थ में ना गवां दे। हमें समय रहते ही पूर्ण सतगुरु से एक निरंकार प्रभु की जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए जिससे हमारा आना मुबारक हो जाये। हमें सच्चाई की रास्ते पर चलते अध्यात्मिकता में अपने कदम बढ़ाने के साथ सेवा , सिमरन व सत्संग करते हुए जीवन व्यतीत करन
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