शहीद भगत सिंह के विचारो को समझना ही उनको सच्ची श्रदाँजलि-अंकुश निझावन
–अपने विचारों के माध्यम से आज भी जीवित है भगत सिंह
— शहीद को आजतक शहीद का दर्जा ही नहीं मिला-अंकुश निझावन
नवांशहर, (जोशी)
स्थानीय राहों रोड पर स्थित श्री कृष्णा ट्यूटोरियल्स के संचालक अंकुश निझावन जो हर वर्ष 23 मार्च को शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड़ कलां में अपने छात्रों के साथ जाकर भगत सिंह को श्रदाँजलि देते है इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते घर पर रहकर ही शहीद भगत सिंह को श्रद्धाजली दी। उन्होंने इस बार श्रद्धांजलि का तरीका बदला इस वार श्रदांजलि भगत सिंह द्वारा लिखी किताब वाय आई एम एन एथीस्ट पढ़ कर दी।
23 मार्च 1931 को देश को आजाद करवाने का सपना दिखाने वाले तीन वीर सपूतों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देकर आजादी के हवन कुंड को पवित्र करते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया था। यह दिन ना केवल भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनों देशभक्त वीर सपूतों को भी भावविभोर होकर श्रद्धांजलि देने के लिए है, बल्कि उनके विचारों को याद करने और समझने के लिए भी है।
अपने संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की मशाल जलाकर देशवासियों के हाथ में थमाकर जाने वाले उस क्रांतिकारी को याद करते हुए उसके विचारों को समझने की आवश्यकता है। बड़े से बड़े साम्राज्य का पतन हो सकता है, आदमी को मारा जा सकता है, लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं। हमें आज आवश्यकता है भगत सिंह के विचारों की प्रासंगिकता को समझने की, आज जरूरत इस बात पर मंथन करने की है कि क्या भगत सिंह के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि उनके समय में थे।
भगत सिंह ने सांप्रदायिक और जातिवाद को बढ़ावा देने वाले लोगों का हमेशा विरोध किया था। वो सत्ता में ऐसा बदलाव चाहते थे जहां आम आदमी की आवाज़ सुनी जा सके। उन्होंने एक लेख मैं नास्तिक क्यों हूँ को लिखकर धर्म और ईश्वर के बारे में अपने विचार प्रकट किए।
भगत सिंह चाहते तो माफी मांग कर फांसी की सजा से बच सकते थे। लेकिन मातृभूमि के सच्चे सपूत को झुकना पसंद नहीं था। इसलिए महज 23 वर्ष की उम्र में ही इस वीर सपूत ने हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था।
भगत सिंह आज भी अपने विचारों के माध्यम से जीवित हैं, उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। लेकिन अफसोस इस बात का है कि शहीद को आज भी शहीद का दर्जा नहीं मिला।
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